पायलट का सुल्तान सा दांव बन सकते है हेमाराम, सोनिया गांधी के भरोसेमंद है चौधरी

- दोनों पक्षों की बन सकती है सहमति - सदन में वरिष्ठ नेता है हेमाराम चौधरी

पायलट का सुल्तान सा दांव बन सकते है हेमाराम, सोनिया गांधी के भरोसेमंद है चौधरी
hemaram choudhary
पायलट का सुल्तान सा दांव बन सकते है हेमाराम, सोनिया गांधी के भरोसेमंद है चौधरी
जयपुर.
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के आगामी दिनों में चुनाव होने है, इस पद के लिए प्रबल दावेदारी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बताई जा रही है। हालांकि अशोक गहलोत का प्रयास है कि राहुल गांधी ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, लेकिन राहुल गांधी ने मना कर दिया है। ऐसे में अगर गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाते हैं तो कांग्रेस के संविधान के मुताबिक एक पद पर एक व्यक्ति के सिद्धांत के लिहाज से गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा, राजस्थान में संघर्ष कर रहे सचिन पायलट भी यही चाहते है कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद मिले, लेकिन गहलोत नहीं चाहते कि मुख्यमंत्री सचिन पायलट बने। ऐसी स्थिति में कई दावेदारों के नाम सामने आ रहे है। कई बार सीपी जोशी तो कई बार रघु शर्मा, गोविंदसिंह डोटासरा व ममता भूपेश के नाम सीएम बनने की सूची में शामिल बताए जाते रहे है, लेकिन इन नामों पर सहमति नहीं बन पा रही है। क्योंकि गहलोत के बिना इनमें से किसी के लिए भी बहुमत साबित करना मुश्किल रहेगा। सूत्रों के मुताबिक गहलोत की मंशा है कि सचिन पायलट मुख्यंमत्री न बने और पायलट चाहते है कि वे नहीं तो उनके खेमे को मौका दिया जाय। ऐसे में सचिन पायलट के पास एक और नाम है जिन पर न केवल गहलोत बल्कि राहुल और सोनिया गांधी भी सहमति जताने से पीछे नहीं खिसकेंगे। वो नाम है राजस्थान विधानसभा में वरिष्ठ नेता व वन मंत्री हेमाराम चौधरी का। हेमाराम चौधरी के नाम के एक तीर से कई निशाने साधे जा सकेंगे। सूत्रों के मुताबिक सम्भावना भी यही है कि पायलट मामला खिसकता देख हेमाराम चौधरी को ही अंतिम विकल्प के रूप में आजमाना चाहेंगे।
सहमति के पीछे तीन बड़े कारण
एक : हेमाराम चौधरी बाड़मेर के गुड़ामालानी से विधायक व वन मंत्री है। वे छठी बार से विधायक है। सरल छवि व अनुभवी है। इस सरकार में सचिन पायलट के साथ खुलकर पक्षधर रहे है। 74 वर्ष की उम्र होने से पायलट के लिए भविष्य में भी रोड़ा नहीं बन पाएंगे। इसलिए हेमाराम का पक्ष मजबूत बनता दिख रहा है।
कारण दो : राजस्थान में लम्बे समय से जाट मुख्यमंत्री की मांग चली आ रही है। जब पहली बार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने, उस दौरान परसराम मदेरणा को दावेदार बताया जा रहा था, लेकिन गहलोत के बनने से कांग्रेस का कोर वोट बैंक काफी स्तर पर खिसका। जाटों की नाराजगी भी गहलोत को झेलनी पड़ी। ऐसे में हेमाराम के नाम पर गहलोत के लिए उस समय की खामी को पूरा करने का मौका मिल जाएगा। साथ ही जोधपुर संसदीय क्षेत्र में जाट वोटबैंक काफी महत्वपूर्ण भूमिका में है, लिहाजा लोकसभा चुनाव में इसका फायदा वैभव गहलोत को भी मिल सकता है। इस गणित को देखते हुए  अशोक गहलोत भी हेमाराम चौधरी के नाम का विरोध नहीं कर पा रहे है।
कारण तीन : भारतीय जनता पार्टी ने डॉ सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर जाट वोटबैंक का साधने का प्रयास किया, लेकिन हाल ही में जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति बनाए जाने के बाद सतीश पुनिया के मुख्यमंत्री की दावेदारी पर आशंका मंडराने लगी है। चूंकि जाट समाज प्रदेश में बाहुल्य में है, कई सीटों पर प्रभाव रखते है और कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता रहा है। इस स्थिति में कांग्रेस अब हेमाराम चौधरी के रूप में एक साल के लिए दांव खेल दे तो काफी हद तक पार्टी को फायदा मिलने की भी सम्भावना रहेगी।
आलाकमान तक सीधी पकड़ में हेमाराम बेहद मजबूत
राजस्थान के कांग्रेस नेताओं में आलाकमान तक पहुंच बनाने वालों में से हेमाराम भी मजबूत नेता है। यही वजह है कि वर्ष 2013 में जब हेमाराम ने चुनाव लड़ने से इनकार किया तब स्वयं सोनिया गांधी ने मनाकर उन्हें टिकट दिया था, हालांकि वे हार गए थे, लेकिन क्षेत्र के लोगों में उनकी पकड़ मजबूत रही।
इंदिरा गांधी की कांग्रेस से आए हेमाराम ने गंगाराम को हराकर रखा था कदम
हेमाराम चौधरी 1980 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस आई से गुड़ामालानी से चुनाव लड़े थे, उस चुनाव में बाड़मेर के कदावर नेता गंगाराम चौधरी को हराने में कामयाब हुए थे। उसके बाद हालांकि 1990 में बाड़मेर से गंगाराम चौधरी के सामने वे हार गए, लेकिन गुड़ामालानी में उन्होंने अपनी मजबूत पकड़ बनाई। अब तक 8 चुनाव लड़े। जिनमें से 6 बार जीते। 1998 की गहलोत सरकार में हेमाराम परिवार कल्याण मंत्री रहे। उसके बाद 2008 में राजस्व मंत्री रहे। वसुंधरा राजे सरकार के प्रथम कार्यकाल में हेमाराम नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके है। 2018 में हेमाराम ने सचिन पायलट का खुलकर समर्थन किया। मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान इन्हें वन मंत्री बनाया गया।
जोशी पर दांव फायदेमंद नहीं
इधर, सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट को रोकने के लिए विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे किया जा रहा है, इसके लिए पायलट राजी नहीं है और न ही पार्टी का कोर वोटर राजी होगा। ऐसे में उपयुक्त विकल्प हेमाराम ही बन पा रहे है।

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