खेसला के उत्पादन व बुनकरों की आत्मनिर्भरता को लेकर आईआईटी जोधपुर का शोधार्थी दल अंतिम दिन पहुंचा लेटा और हरजी

खेसला के उत्पादन व बुनकरों की आत्मनिर्भरता को लेकर आईआईटी जोधपुर का शोधार्थी दल अंतिम दिन पहुंचा लेटा और हरजी
  • खेसला बुनकरों से की मुलाकात , समझी बुनाई एवं मिट्टी के घोड़े बनाने की बारीकियाँ

जालोर. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधार्थी दल रविवार को हरजी और लेटा पहुंचा। जहां दल सदस्यों ने लेटा में खेसला बुनाई की कला की बारीकियां समझी साथ ही के उत्पादों के निर्माण, बुनकरों की आर्थिक सामाजिक स्थित व महिलाओं की आत्मनिर्भरता को लेकर उनसे चर्चा की।

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शोधार्थियों द्वारा खेसला निर्माण कला के संरक्षण व आने वाली पीढ़ियों को इस विरासत के हस्तांतरण को लेकर विस्तार से चर्चा की गई। गौरतलब है कि अपने 3 दिवसीय दौरे पर जालोर पहुंचा शोधार्थियों का यह दल पश्चिम राजस्थान पारंपरिक व्यावसायिक कौशल के अंतरपीढ़ी हस्तांतरण पर सामाजिक आर्थिक प्रभाव विषय पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के तहत सांस्कृतिक स्थिरता और सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता पर शोध कर रहा है। इनकी यह पहल राजस्थान की समृद्ध हस्तशिल्प परंपराओं के संरक्षण एवं संवर्धन में सहायक होगी, जिससे यह कला भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाई जा सकें। इस पहल से जिले में स्थानीय कारीगरों, विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकेगा और पारंपरिक कला एवं शिल्प को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकेगी। 

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शोधार्थियों का यह दल सहायक आचार्य डॉ. आकांक्षा चौधरी एवं डॉ लइक सिद्दीकी एवं गोपा कुमार के सुपरविजन में कार्य कर रहा है। दल में नेहा पिलानिया, ज्ञानचंद, श्वेता, वामा, जिकमिक, रिद्धि, मुकेश खारवाल व अरविंद शामिल है।