संविधान केवल अदालतों तक सीमित न रहे, आचरण में भी दिखाई दे - जस्टिस जे. के. माहेश्वरी

संविधान केवल अदालतों तक सीमित न रहे, आचरण में भी दिखाई दे - जस्टिस जे. के. माहेश्वरी
  • अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद का 17वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन

जालोर. अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद् के तीन दिवसीय 17वें राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन शनिवार को विभिन्न सत्रों का आयोजन हुआ। जिनमें सुप्रीम कोर्ट एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों तथा विधि विशेषज्ञों ने सहभागिता की। इस अवसर पर “यूनिटी एंड इंटीग्रिटी ऑफ नेशन : कॉन्स्टिट्यूशन मैंडेट” विषय पर केंद्रित अधिवेशन के तीसरे सत्र में मुख्य अतिथि के नाते सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस जे. के. माहेश्वरी मौजूद रहे। वहीं, राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस विनीत कुमार माथुर, जस्टिस संजीत पुरोहित एवं पूर्व न्यायाधीश डॉ. विनीत कोठारी, अधिवक्ता परिषद् के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्रन डी, सुनील जैन, विनीता पाय, सुरेश मोर, मार्टिनो कार्तो, झरनासिंह एवं तेज कुमार मोड़ उपस्थित रहे।

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इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जे. के. माहेश्वरी ने कहा कि संविधान केवल अदालतों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि वकीलों और आम नागरिकों के आचरण में भी परिलक्षित होना चाहिए।

उन्होंने संविधान से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. बी. आर. आंबेडकर थे, संविधान की मूल प्रति का आर्टवर्क नंदलाल बोस ने किया था तथा इसे प्रेम बिहारी नारायण राय ने अपने हाथों से लिखा था। इसके लेखन में 303 प्रकार के कुल 432 निब्स का उपयोग किया गया। उन्होंने डेटा ओरिएंटेशन के माध्यम से इन निब्स के चित्र भी सेमिनार हॉल में प्रदर्शित किए।

जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि बालोतरा और जोधपुर की भूमि वीरता और अटूट विश्वास के लिए जानी जाती है। उन्होंने “न्याय: मम् धर्मः” के ध्येय-वाक्य का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मात्र एक वाक्य नहीं, बल्कि एक जीवंत सत्य है। उन्होंने विक्रमादित्य के सिंहासन से जुड़े न्याय के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय न्याय न केवल दिया जाता था, बल्कि जनता द्वारा स्वीकार भी किया जाता था।

उन्होंने कहा कि संविधान की पुस्तक केवल वकीलों और न्यायाधीशों के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी आस्था का केंद्र होनी चाहिए। कानून के शासन (Rule of Law) में हर धर्म के व्यक्ति के लिए संविधान सर्वोपरि है। संविधान ही उनके लिए गीता, कुरान और बाइबिल के समान है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए “सेक्युलर” शब्द पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राजस्थान के विधिवेत्ताओं ने इसे “धर्मनिरपेक्ष” के बजाय “पंथनिरपेक्ष” बताया था, जिसे बाद में स्वीकार किया गया। इस अवसर पर जस्टिस विनीत माथुर ने कहा कि भारतीय संविधान की उद्देशिका में “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने संविधान की मूल भावना को व्यक्ति परक नहीं बल्कि राष्ट्र परक बताया। 

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पूर्व न्यायाधीश डॉ. विनीत कोठारी ने कहा कि अधिवक्ता न्याय रूपी वाहन का प्रमुख पहिया हैं, उनके बिना न्याय की कल्पना संभव नहीं है। उन्होंने भारतीय न्याय प्रणाली की वैश्विक प्रतिष्ठा का उल्लेख करते हुए इसे बनाए रखने में वकीलों और न्यायाधीशों की समान जिम्मेदारी बताई। अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्रन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन अधिवक्ता परिषद मध्यप्रदेश के ज़ोनल सचिव प्रदीप सिंह द्वारा किया गया।

बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं की उपस्थिति

अधिवेशन के विभिन्न सत्रों के दौरान अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हरिराव बोरीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष के. श्रीनिवास मूर्ति, राष्ट्रीय सचिव विक्रम दुबे, प्रांत अध्यक्ष सुनील जोशी, प्रांत महामंत्री श्याम पालीवाल, हाईकोर्ट जोधपुर इकाई के महामंत्री देवकीनंदन व्यास सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता उपस्थित रहे।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने मोहा मन — चरी नृत्य, पंजाबी भांगड़ा और तलवार रास को मिली भरपूर सराहना

अधिवेशन के प्रथम दिन शुक्रवार रात भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के तत्वावधान में “कल्चरल नाइट” का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना से हुई। इसके पश्चात चरी नृत्य ने दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी। पोरबंदर से आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुत शौर्य गीत पर आधारित तलवार रास और पंजाबी कलाकारों का ऊर्जावान भांगड़ा दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहा। इसके अतिरिक्त मयूर नृत्य, कथक, राठवा तथा मांगणियार कलाकारों की प्रस्तुतियों ने कार्यक्रम को रंगारंग बना दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन पूनम शर्मा एवं अधिवक्ता पंकज अवस्थी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में अधिवक्ता एवं अतिथि उपस्थित रहे।