रूमादेवी फाउंडेशन ने रेगिस्तान की बंजर भूमि पर उगने वाले आकड़े को बनाया आमदनी का जरिया

- आक के प्राकृतिक रेशे से बन रहे हैं गर्म कपङे
- ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार का एक नया विकल्प, महिला समूहों व किसानों को मिलेगी अतिरिक्त आमदनी
बाङमेर/जालोर. रेगिस्तान में आक से हम सब परिचित है। इसके औषधीय और धार्मिक महत्व पर भी सुना है पर अब इस आक या आकङे के रेशे से कपङा भी बनने लगा है और उसके लिए इस प्राकृतिक रेशे को राज्य स्तर पर एकत्रित करने की मुहिम को अंजाम दे रही है अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर और राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता रूमा देवी।
रूमा देवी का फाउंडेशन आक पर लगने वाले 150 किवन्टल आम नुमा फल को एकत्रित करने की मुहिम में लगा है। राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, जालौर, नागौर, पाली, बीकानेर, चुरू, सीकर, झूंझनु, हनुमान गढ आदि जिलो में कार्य आरम्भ हुआ है।
रूमा देवी ने बताया कि भारत सरकार के वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं व किसानों के लिए इसे उपयोगी बताया और कहा कि वस्त्र मंत्रालय व उत्तरी भारत वस्त्र अनुसंधान संघ के वैज्ञानिको ने लंबे अनुसंधान के बाद इसकी उपयोगिता सिद्ध की है। बंजर भूमि पर भी अपने आप उगने वाले आक को जहां जंगली झाङ - झंखाङ समझकर काट दिया करते थे, अब किसानों के लिए खेती का विकल्प बनेगा। नितरा के महानिदेशक व वस्त्र वैज्ञानिक डाॅ एम एस परमार के अनुसार वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में नवाचार अब धरातल पर शानदार परिणाम दे रहा है।
रूमा देवी फाउंडेशन ने सीसीआईसी के सहयोग से एकत्रित करने के लिए रोजगारन्मुखी प्रशिक्षण आरम्भ किया है जिसके लिए ऑनलाइन व ऑफलाइन प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
रूमा देवी फाउंडेशन के विक्रमसिंह गोदारा ने बताया कि इसकी खेती सरल है। इसका सस्टेनेबल फाइबर बहुत हल्का, ज्यादा गर्मी देने वाला बहुत महीन होता है।
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किसानों के लिए एक नई फसल का विकल्प है जिसमें विशेष लागत व रख-रखाव की जरूरत नहीं है और अधिक आर्थिक लाभ मिल सकता है। एक बार लगने के बाद दस साल तक फसल ली जा सकती है।
रूमा देवी ने बताया कि स्लीपिंग बैग, जैकेट जैसे बहुत से प्रोडक्ट बनाये है जो हमारे सैनिकों को -20 से -40 डिग्री सेन्टीग्रेड तक सुरक्षा दे सकते हैं तथा इनका वजन दूसरे फाइबर की तुलना में बहुत हल्का होने से पहाङी व बर्फीली जगहों पर लाना ले जाना आसान रहता है।
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रेशे को एकत्रित करने का तरीका आक पर लगने वाला आम जैसा जो फल होता है उसे हरा ही तोङा जाता है जिसके अंदर रेशा व बीज होता है। इसे सावधानीपूर्वक तोङना होता है। जिसके लिए रूमा देवी फाउंडेशन संग्रहण, भंडारण का प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है।