कभी भरोसेमंद थी साधारण डाक, आज खुद गुमशुदा!

कभी भरोसेमंद थी साधारण डाक, आज खुद गुमशुदा!

देवेन्द्रराज सुथार. साधारण डाक जो कभी संचार का सबसे विश्वसनीय और व्यापक साधन हुआ करती थी, आज अपनी विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है। समय के साथ संचार के विविध माध्यमों के विकास और तकनीकी प्रगति के चलते डाक व्यवस्था की उपयोगिता में भारी बदलाव आया है। परंतु समस्या मात्र प्रतिस्पर्धा की नहीं है; डाक सेवा, विशेषतः साधारण डाक आज जिन कारणों से उपेक्षित हो रही है, वे प्रणालीगत, प्रशासनिक, तकनीकी और मानव संसाधन से संबंधित हैं। इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि आज आम नागरिकों को साधारण डाक समय पर प्राप्त नहीं होती, कभी-कभी तो डाक पहुंचती ही नहीं।

विगत कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि साधारण डाक की डिलीवरी में असामान्य देरी सामान्य बात हो गई है। सरकारी और निजी संस्थानों से भेजी गई चिट्ठियां, बिल, निमंत्रण पत्र, परीक्षाओं से संबंधित दस्तावेज, यहां तक कि न्यायिक नोटिस भी या तो देर से पहुंचते हैं या गुम हो जाते हैं। यह स्थिति नागरिकों के जीवन में अव्यवस्था और असमंजस उत्पन्न करती है। एक ओर जहां यह सरकारी प्रतिष्ठानों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाता है, वहीं दूसरी ओर यह डाक विभाग की साख और विश्वसनीयता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

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डाक सेवा की गिरती विश्वसनीयता के लिए प्रमुखतः दो पक्षों की जिम्मेदारी बनती है- डाककर्मी और डाक-प्रशासन। डाकियों की लापरवाही एक सामान्य आरोप बन चुका है, परंतु इसे केवल एकपक्षीय दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं होगा। वास्तव में कई डाककर्मियों पर काम का अत्यधिक बोझ होता है, जिससे उनकी कार्यकुशलता और कार्यनिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक ही डाकिया कई किलोमीटर के दायरे में वितरण कार्य करता है, कभी-कभी उसे ऐसे इलाकों में भी जाना होता है जहां सड़क, परिवहन और संचार सुविधाएं सीमित या अनुपलब्ध होती हैं। शहरों में भी कार्यक्षेत्र बड़ा होता जा रहा है और कर्मचारियों की संख्या अपेक्षाकृत कम। परिणामस्वरूप, डाक समय पर नहीं पहुंच पाती।

यह समस्या केवल मानवीय संसाधनों की कमी तक सीमित नहीं है। डाक विभाग की कार्यप्रणाली, ढांचागत सुविधाओं और तकनीकी अद्यतनीकरण की धीमी गति भी एक बड़ा कारण है। आज भी अनेक डाकघर मैनुअल प्रणाली पर निर्भर हैं, जहां ट्रैकिंग, वर्गीकरण और वितरण की प्रक्रिया आधुनिक तकनीक की तुलना में अत्यंत धीमी और त्रुटिपूर्ण है। साधारण डाक की कोई ट्रैकिंग सुविधा नहीं होती, जिससे यह सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है कि डाक कहां रुकी या किस स्तर पर लापरवाही हुई। इसके विपरीत कूरियर सेवाओं और रजिस्टर्ड डाक में ट्रैकिंग की सुविधा से उपयोगकर्ता को संतोष और विश्वास बना रहता है।

वहीं दूसरी ओर, कुछ डाककर्मियों की कार्य के प्रति उदासीनता, लापरवाही और कभी-कभी भ्रष्टाचार भी इन समस्याओं को बढ़ावा देते हैं। कई बार देखा गया है कि डाकिया पत्र पहुंचाए बिना ही डाक को इधर-उधर फेंक देते हैं या कचरे में डाल देते हैं। कुछ मामलों में तो साधारण डाक जानबूझकर विलंब से पहुंचाई जाती है, विशेषकर तब जब उसमें कोई आर्थिक लाभ नहीं जुड़ा होता। डाक वितरण में ऐसी लापरवाही एक सामाजिक और प्रशासनिक संकट को जन्म देती है, क्योंकि यह नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और सूचनाओं तक पहुंच के अधिकार का उल्लंघन करती है।

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डाक विभाग में लगातार घटते बजट और निजीकरण की ओर झुकाव ने भी इस गिरावट को प्रोत्साहित किया है। विभाग की प्राथमिकता अब पार्सल और स्पीड पोस्ट जैसी लाभकारी सेवाओं की ओर अधिक हो गई है, जबकि साधारण डाक जैसी सार्वजनिक सेवाएं पीछे छूट गई हैं। इससे सेवा का संतुलन बिगड़ता है और समाज के वे वर्ग जो डिजिटल या निजी सेवाओं का खर्च नहीं उठा सकते, उनके लिए संचार का यह पारंपरिक माध्यम अविश्वसनीय बनता जा रहा है।

इस पूरी परिप्रेक्ष्य में सुधार की आवश्यकता अनिवार्य हो जाती है। डाक विभाग को अपने मूल उद्देश्य- 'सार्वजनिक सेवा' की ओर पुनः ध्यान केंद्रित करना होगा। कर्मचारियों की संख्या में यथोचित वृद्धि, कार्यक्षेत्र का संतुलन, तकनीकी ढांचे का आधुनिकीकरण और साधारण डाक के लिए सीमित ट्रैकिंग सुविधा की शुरुआत जैसे उपाय प्राथमिकता से लागू करने होंगे। इसके अतिरिक्त डाककर्मियों के प्रशिक्षण, अनुशासन और कार्य-संस्कृति में सुधार लाना भी आवश्यक है, ताकि सेवा में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और पेशेवर निष्ठा को बढ़ावा दिया जा सके।

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जनसाधारण की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। जब तक नागरिक साधारण डाक में विलंब या गुमशुदगी की शिकायत दर्ज नहीं कराते, तब तक तंत्र की जवाबदेही स्थापित नहीं हो सकती। डाक विभाग की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए शिकायत निवारण तंत्र को सरल, पारदर्शी और सुलभ बनाना होगा। इसके साथ ही नीति निर्धारकों को चाहिए कि वे डाक सेवा को महज एक परंपरा या अतीत की विरासत न मानकर इसे आज के बदलते परिप्रेक्ष्य में फिर से उपयोगी और विश्वसनीय माध्यम के रूप में सशक्त करें।