जयपुर में अंतरीप शारदा देवी सम्मान समारोह हुआ आयोजित

जयपुर। साहित्यिक पत्रिका एक ओर अंतरीप द्वारा पुनः आरंभ किए गए सम्मान समारोह में आज रविवार 7 सितंबर को राजस्थान की साहित्यिक संस्कृति के दो वरिष्ठ स्तंभों तथा दो नवोदित लेखकों को सम्मानित किया गया।
राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सभागार में आयोजित इस गरिमामयी समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज को प्रथम शारदा देवी स्मृति सम्मान से विभूषित किया गया। इसी अवसर पर वरिष्ठ आलोचक डॉ राजाराम भादू को प्रथम अंतरीप पुरस्कार तथा नवोदित लेखकों उत्सव पानेरी और देवेन्द्र कुमार सुथार को नवोदित अंतरीप पुरस्कार प्रदान किए गए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध शिक्षाविद और गांधीवादी चिंतक प्रो. नरेश दाधीच ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में चर्चित संपादक और लेखक यशवंत व्यास उपस्थित रहे। सभा में साहित्य और विचार की गरिमा से भरे वक्तव्यों ने वातावरण को विशेष रूप से ऊर्जावान बना दिया।
समारोह का आरंभ जनवादी लेखक संघ के सचिव संदीप मील के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने डॉ राजाराम भादू का परिचय कराते हुए कहा कि भादू हिंदी आलोचना के ऐसे लेखक हैं जिनकी लेखनी में एक ओर सहजता और पारदर्शिता है तो दूसरी ओर कठोरता और सख़्ती का संतुलित स्वरूप भी मौजूद है। वे नवोदित लेखकों की आलोचना में कोमलता बरतते हुए उन्हें प्रोत्साहित करते हैं, वहीं वरिष्ठ रचनाकारों के छूटे हुए संदर्भों और तथ्यगत भूलों को याद दिलाने में भी पीछे नहीं हटते। उनके अनुसार भादू केवल अच्छे आलोचक ही नहीं, बल्कि संवेदनशील मित्र और सच्चे इंसान भी हैं।
वरिष्ठ लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने डॉ हेतु भारद्वाज का परिचय देते हुए कहा कि साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन करने वाले लेखक बहुत कम हुए हैं और डॉ भारद्वाज उन चुनिंदा रचनाकारों में से एक हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि जीवन के नवें दशक में भी भारद्वाज की सक्रियता, उत्साह और सकारात्मक दृष्टि आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने कहा कि डॉ भारद्वाज वृद्धावस्था को आनंदपूर्वक जीने का जीता-जागता उदाहरण हैं।
इस अवसर पर डॉ राजाराम भादू ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि विचार और आलोचना को प्रोत्साहित करने वाले उपक्रम आज बहुत कम बचे हैं, ऐसे में अंतरीप का यह प्रयास विशेष प्रशंसा का पात्र है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हिंदी में आलोचना और वैचारिक लेखन के लिए गिने-चुने ही पुरस्कार हैं। भादू ने बताया कि उन्होंने शिक्षा पर बहुत लिखा है और अब उनकी दृष्टि संस्कृति के क्षेत्र पर केंद्रित है, क्योंकि इस दौर में संस्कृति पर लेखन की अत्यधिक आवश्यकता है।
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डॉ हेतु भारद्वाज ने भी अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि अंतरीप सम्मान उनके लिए आभार और आत्मीयता का विषय है। उन्होंने उदयप्रकाश के कथन का उल्लेख करते हुए विनम्रता से कहा कि “मैं विद्वान नहीं हूँ, परंतु अंतरीप ने मुझे विद्वान मानकर सम्मानित किया है।” उन्होंने विशेष रूप से प्रो. नरेश दाधीच को याद किया, जिन्होंने कोटा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए एक मृतप्राय संस्था को नए जीवन से जोड़ने का कार्य किया था। साथ ही उन्होंने अपने आत्मीय मित्र यशवंत व्यास का उल्लेख किया, जो उन्हें साहित्य का ‘जासूस 007’ कहकर पुकारते हैं। भारद्वाज ने अंतरीप के प्रबंध संपादक डॉ प्रेमकृष्ण शर्मा के समर्पण की भी प्रशंसा की और कहा कि वे नब्बे वर्ष की आयु में भी निरंतर साहित्य और समाज के लिए निस्वार्थ कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “मैं कुछ लोगों के लिए बुरा व्यक्ति हूँ और मुझे यह बुरा रूप भी पसंद है।”
मुख्य अतिथि यशवंत व्यास ने अपने वक्तव्य में कहा कि डॉ हेतु भारद्वाज ऐसे लेखक हैं जो साहित्य को जलती हुई मशाल की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे ले जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लेखक और साहित्यकार तो अनेक हैं, परंतु अच्छे इंसान का होना बहुत दुर्लभ है और भारद्वाज से मिलकर हर बार यह अनुभव होता है। उन्होंने डॉ राजाराम भादू को हिंदी आलोचना का शीर्ष नाम बताते हुए कहा कि उनकी भाषा सहज और मारक दोनों है, और वे हर काम पूरे मन और निष्ठा से करते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने भी दोनों वरिष्ठ रचनाकारों को सम्मानित होते देखकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज का दिन गर्व का है, क्योंकि वरिष्ठों के साथ-साथ नवोदित रचनाकारों को भी मंच पर सम्मानित किया गया। उनके अनुसार अपने समय के यथार्थ को शब्द देने के लिए बड़ी संख्या में नए लोगों की आवश्यकता है और ऐसे आयोजनों से ही युवा रचनाकार प्रेरित होकर साहित्य की ओर आते हैं।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. नरेश दाधीच ने कहा कि डॉ भारद्वाज और डॉ भादू दोनों का हिंदी के प्रति प्रेम असाधारण है। उन्होंने कहा कि लेखन और लेखकों की राजनीति अलग विषय है, लेकिन साहित्य से सच्चा प्रेम ही असली पहचान है। आज के समय में जब हिंदी से प्रेम करने वाले लेखक कम हो रहे हैं, ऐसे में इन दोनों की ऊर्जा और उत्साह को वे प्रणाम करते हैं।
समारोह के दौरान नवोदित रचनाकार उत्सव पानेरी और देवेन्द्र कुमार सुथार ने अपनी रचनाओं का पाठ कर उपस्थित जनों को अपनी सृजनात्मकता से प्रभावित किया। इस अवसर पर सर्वाधिक आकर्षक प्रस्तुति रही डॉ प्रेमकृष्ण शर्मा का लिखा जनवादी गीत “कभी कभी ऐसा लगता है ,ये है अंत हमारा , आगे कोई गगन नहीं है, और ना कोई तारा” जिसे अर्चना ने अपनी मधुर आवाज़ में गाया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अजय अनुरागी ने कुशलतापूर्वक किया।
यह आयोजन न केवल वरिष्ठ और नवोदित लेखकों के बीच संवाद का सेतु बना, बल्कि यह संदेश भी दिया कि हिंदी साहित्य में आलोचना, वैचारिक लेखन और नवसृजन की परंपरा आज भी जीवित और सक्रिय है।