जालोर कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद के लिए खींचतान जारी, एक-दूसरे की कटिंग में जुटे नेता, क्या लक्ष्मी के नाम पर हो सकेगी सहमति!

जालोर कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद के लिए खींचतान जारी, एक-दूसरे की कटिंग में जुटे नेता, क्या लक्ष्मी के नाम पर हो सकेगी सहमति!
  • तीस से अधिक लोगों ने किए हैं जिला अध्यक्ष बनने के आवेदन
  • अब एआईसीसी पर्यवेक्षक परेश धनानी ने सांसद प्रत्याशी व विधायक/प्रत्याशी से छह-छह नाम की मांगी सूची

दिलीप डूडी, जालोर. जालोर में कांग्रेस का जिलाध्यक्ष बनाने को लेकर खींचतान जारी है। 12 अक्टूबर को शुरुआत में जो माहौल था, वो अब बदल चुका है। जिले के कांग्रेस नेता एक दूसरे की कटिंग के चक्कर में जुटे हुए हैं। जानकारी में सामने आया है कि पर्यवेक्षक की ओर से जिला स्तर व ब्लॉक स्तर पर रायशुमारी के बाद 30 से अधिक लोगों के आवेदन जिलाध्यक्ष पद के लिए जमा हो चुके है, लेकिन अब तक एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। चूंकि 18 अक्टूबर के बाद एआईसीसी पर्यवेक्षक परेश धनानी को छह नाम का पैनल उच्च स्तर पर भेजना है, इसलिए अब पर्यवेक्षक धनानी की ओर से जिले की पांचों विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक-विधायक प्रत्याशी व सांसद प्रत्याशी से छह-छह नामों की सूची मांगी है। इस सूची में जिसका नाम भारी रहेगा उसे मौका मिलने की अधिक संभावना बनेगी।

नियमों में मिलेगी शिथिलता

हालांकि कांग्रेस नेता लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जिलाध्यक्ष पद के लिए जो गाइडलाइन बनाई है, इस खींचतान से उस पर खरा उतरना मुश्किल लग रहा है। इस कारण अब अंत में कांग्रेस इन नियमों में शिथिलता भी बरत सकती है।

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नियमों की शिथिलता के कारण ही कई चौंकाने वाले नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। जालोर में लंबे समय से हर चुनाव में हार का मुंह देख रही कांग्रेस के नेता यहां अपने-अपने चहेते को जिलाध्यक्ष बनाने की जुगत में है, ताकि चुनाव के समय काम आ सके।

रतन देवासी व सुखराम विश्नोई की अदावत से बिगड़े समीकरण

बताया जा रहा है कि शुरुआत में वर्तमान जिलाध्यक्ष भंवरलाल मेघवाल, सवाराम पटेल, रमीला मेघवाल, योगेंद्रसिंह कुम्पावत, शैतानसिंह धनानी, गोदाराम देवासी के नाम चर्चा में थे, लेकिन जिले के बड़े नेता इन नामों एक सहमत नहीं हो पाए।

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बड़े नेताओं ने कुछ अपने चहेते कार्यकर्ताओं के नाम आगे किए, ज़िस कारण समीकरण बिगड़ने लगे। जानकारी में सामने आया कि पुखराज पाराशर समूह की ओर से भरत सराधना के नाम को आगे किया, इस पर सुखराम विश्नोई ने मौन सहमति दे दी थी, लेकिन रानीवाड़ा विधायक रतन देवासी ने भविष्य को देखते हुए इसका विरोध जताया और रतन देवासी ने अपने समर्थकों से खुद का नाम आगे बढ़वाया और स्वयं ने सांचौर क्षेत्र के जयंतीलाल विश्नोई और जेके विश्नोई के नाम को प्रस्तावित किया, लेकिन जयंती विश्नोई व जेके विश्नोई के नाम पर सुखराम विश्नोई ने असहमति जताते हुए खुद का नाम आगे कर दिया कि अगर नियमों में शिथिलता दी जाए तो वे स्वयं अध्यक्ष बनने को तैयार है, बाकी नेताओं ने सुखराम के नाम पर सहमति जताई लेकिन रतन देवासी ने आपत्ति कर दी।

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इधर, सुखराम विश्नोई का नाम आते ही ओबीसी को देखते ही सवाराम पटेल को दौड़ से बाहर कर दिया। चूंकि सवाराम पटेल के नाम पर बाकि नेता लगभग सहमत थे, लेकिन सांसद प्रत्याशी वैभव गहलोत सहमत नहीं थे, इसलिए पटेल के नाम पर एक राय नहीं बन पाई थी।

रमीला के नाम पर असहमत रतन देवासी

इधर, वर्तमान जिलाध्यक्ष भंवरलाल मेघवाल को रिपीट करने की बात भी चली, लेकिन कुछ नेताओं ने असहमति जताई तो एससी प्लस महिला वर्ग को साधते हुए रमीला मेघवाल का नाम एक पक्ष ने आगे किया, लेकिन रमीला मेघवाल के नाम पर रतन देवासी ने आपत्ति जता दी।

क्या लक्ष्मी मीणा के नाम पर हो सकेगी सहमति

लक्ष्मी मीणा

अब बताया जा रहा है कि महिला वर्ग में रमीला मेघवाल के नाम पर आपत्ति जताने पर एक समूह ने जिला परिषद सदस्य व जिला प्रमुख प्रत्याशी रही लक्ष्मी मीणा का नाम को प्रस्तावित किया है, हालांकि अभी तक इनके नाम पर कोई आपत्ति नहीं आई है।

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फिर भी अब पर्यवेक्षक परेश धनानी ने कांग्रेस प्रत्याशी सुखराम विश्नोई, सरोज चौधरी, रमीला मेघवाल, विधायक रतन देवासी, समरजीत सिंह व सांसद प्रत्याशी से छह-छह नाम की सूची मांगी है। इसमें जो नाम सभी की सूची में उच्च क्रम पर रहेगा, उसे सम्भवतया मौका मिल सकता है।

अब ये नाम प्रबल दौड़ में शामिल

इस खींचतान में अब लक्ष्मी मीणा, योगेंद्रसिंह कुम्पावत, सुखराम विश्नोई, भरत सराधना, रमीला मेघवाल के नाम प्रबलता के रूप में दौड़ में है। सूत्रों के मुताबिक अंत में किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनती दिखी तो भीनमाल विधायक डॉ समरजीत सिंह के नाम पर दांव खेला जा सकता है।

पद पाने को कई आतुर, लेकिन कांग्रेस के लिए संघर्ष को तैयार नहीं

हमेशा देखा जाता है कि चुनाव के वक्त टिकट के लिए हो या अन्य पद की दावेदारी हो, इस दौरान कई ऐसे नाम भी सामने आते है जो कभी कांग्रेस की बैठकों में नहीं देखे जाते और न ही कभी संघर्ष करते दिखते, केवल मौसमी मेढक बनकर पद पाने की दौड़ में शामिल जरूर हो जाते है। बड़े नेताओं को भी समझना चाहिए कि सत्ता से लड़ने के लिए कौन कांग्रेसी सड़कों पर संघर्ष करते है, कौन कार्यकर्ता कांग्रेस की नीतियों को जन जन तक पहुंचाते है, कौन कार्यकर्ता आमजन के संकट या समस्या को अधिकारियों से सुलझवाते है, ऐसे कार्यकर्ताओं को मौका क्यों नहीं दिया जाता।

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पर्यवेक्षक को तो स्पष्ट रूप से पिछले दो साल की कांग्रेस के बैठकें, धरने प्रदर्शन व आयोजन की सूची मांगकर देखनी चाहिए , उसमें किस कार्यकर्ता की भूमिका कितनी रही कैसी रही, अपने आप समझ आ जायेगा कि कौन व्यक्ति जिलाध्यक्ष के लिए उपयुक्त हो सकता है। अन्यथा इस प्रकार की खींचतान से जिलाध्यक्ष जरूर बन जाएगा, लेकिन जनता में विश्वास नहीं बना पाएगा।